भाषा का विद्यालयी पाठ्यक्रम में स्थान – हमारे देश में पाठ्यक्रम शिक्षा में सामान्य तौर पर चार प्रकार की भाषाओं का प्रयोग किया जाता है-
(1) मातृभाषा (Mother tongue) – जिसे बालक ब से ही बोलता और समझता है।
(2) राजभाषा (Official Language) – जो देश में मान्य ोता है तथा सम्पर्क भाषा होती है।
(3) प्राचीन संस्कृत भाषा (ancient Sanskrit language) – राष्ट्र द्वारा मान्य मानक भाषा की मूल प्रेरणा स्रोत भाषा होती है, जैसे-संस्कृत ।
(4) विदेशी भाषा (foreign language)- जो विदेशों से सम्पर्क करने में सहायक होती है, जैसे-भारतीय सन्दर्भ में अंग्रेजी।
प्राथमिक पाठ्यक्रम की भाषा- प्राथमिक अवस्था में बालक अथवा बालिकाओं को कितनी भाषाएँ पढ़ाई जाएँ, इस पर शिक्षाशास्त्री तथा मनोवैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। अधिकांश शिक्षाशास्त्री यह मानते हैं कि निम्न प्राथमिक स्तर पर अर्थात् कक्षा एक, दो और तीन में केवल एक भाषा (मातृभाषा) पढ़ानी चाहिए। इस स्तर के बाद कोई मातृभाषा से भिन्न भाषा सिखायी जानी चाहिए। भारतीय सन्दर्भ में हिन्दीतर राज्यों में हिन्दी होनी चाहिए। हिन्दी भाषी राज्यों में इस स्तर पर सरल संस्कृत का अभ्यास कराया जाना चाहिए, अन्य किसी प्रान्तीय या विदेशी भाषा का नहीं।
प्रश्न यह है कि प्राथमिक स्तर पर भाषा का पाठ्य कैसा हो ? इस सन्दर्भ में विद्वानों का मत है कि पाठ्यक्रम में ऐसी कहानियाँ और कविताएँ होनी चाहिए जो छात्रों में राष्ट्रीय भावना तथा सामाजिक समरसता की भावना उत्पन्न करें। छात्रों में अन्धविश्वास, जातीय विभेद तथा ऊँच-नीच की भावना उत्पन्न करने वाली विषय-वस्तु पाठ्यक्रम में न रखी जाएँ। पाठ्यक्रम ऐसा हो जो छात्र पर ऐसा प्रभाव डाले जिससे वह कुसंस्कारों से दूर रहे।
माध्यमिक पाठ्यक्रम की भाषा– इस स्तर का भाषा शिक्षण सबसे अधिक विवादित होता है। त्रिभाषा सूत्र इसी स्तर की भाषा का सामान्य हल था परन्तु इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया। केरल में यह ठीक तरीके से लागू किया गया है परन्तु उत्तर प्रदेश में इसेमनमाने ढंग से लागू किया गया है।
• मातृभाषा हिन्दी प्रथम भाषा है।
• संस्कृत द्वितीय भाषा है।
• अंग्रेजी विदेशी भाषा है।
उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम और भाषा- विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम में सभी देशी और विदेशी भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन की सुचारु व्यवस्था होनी चाहिए। यह व्यवस्था वैकल्पिक हो, छात्र स्वेच्छा से जो भाषा पढ़ना चाहें, पढ़ें परन्तु अन्य विषयों में पठन-पाठन की एक निश्चित भाषा होनी चाहिए, जो या तो मातृभाषा हो अथवा राष्ट्रभाषा हिन्दी हो। देश का यह दुर्भाग्य है कि यहाँ की प्रान्तीय सरकारों ने अपने विश्वविद्यालयों में अभी तक न तो मातृभाषा को शिक्षण का माध्यम बनाया और न ही हिन्दी को, सर्वत्र अंग्रेजी ही पठन-पाठन का माध्यम बनी हुई है
FAQ
Q. विद्यालय पाठ्यक्रम में भाषा का क्या स्थान है?
A. विषय में ज्ञान का सृजन, भण्डारण, सम्प्रेषण, मूल्यांकन एवं संशोधन करता है। इसी कारण भाषा का स्थान स्कूली शिक्षा के पूरे पाठ्यक्रम में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
Q. पाठ्यक्रम में भाषा का क्या स्थान है?
A. भाषा संचार और समझ की आधारशिला है, जो हमारे जीवन के हर पहलू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।