बाल-अपराध क्या है; बाल-अपराध का अर्थ एवं इस से होने वाली समस्या

बाल-अपराध (JUVENILE DELINQUENCY) – बाल-अपराध सामाजिक और वैयक्तिक विघटन का परिणाम है। हाल ही में बाल अपराध विज्ञान एक अलग विज्ञान के रूप में प्रारम्भ हुआ है। यह समाज-विज्ञान की वह शाखा है जो बच्चों के समाज विरोधी व्यवहार का अध्ययन करती है। बच्चों में नटखटपन एक सार्वभौमिक तथ्य है। किन्तु जब यह नटखटपन समाज की मान्यताओं को भंग करने लगता है तो वह बाल-अपराध के नाम से जाना जाता है।

बाल-अपराध (child crime) की समस्या कोई पृथक् समस्या नहीं वरन् यह सामाजिक परिवर्तन और समाज में असामंजस्य का ही परिणाम है। पश्चिमी देशों में औद्योगीकरण (industrialization) के प्रभाव से सामाजिक संरचना एवं सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन आ रहे हैं। परिणामस्वरूप वहां बाल-अपराधों की समस्या उत्पन्न हुई है। भारतीय समाज में ग्रामीण विशेषताएं व्याप्त हैं और इसे अपनी परम्पराओं से घनिष्ठ लगाव है। अतः यहां बाल-अपराध की भीषण समस्या नहीं है। किन्तु अब शहरों के विकास एवं ग्रामीण जनता का शहरों की ओर आगमन तथा संयुक्त परिवार के विघटन से नियन्त्रण में शिथिलता आयी है एवं पड़ोस का प्रभाव भी क्षीण हुआ है। कुछ समय पूर्व तक परिवार द्वारा प्राप्त सामाजिक और आर्थिक सहायता के अतिरिक्त जो मानवीय सुरक्षा मिलती थी वह अब कम होती जा रही है।

आर्थिक अभाव के कारण बच्चों की उचित देख-रेख नहीं हो पाती और उचित समाजीकरण के अभाव में बच्चा समाज-विरोधी हो जाता है। बच्चे कोमल पौधे की तरह हैं जिनका सफलतापूर्वक फलना एवं फूलना नाजुक पालन-पोषण पर निर्भर करता है। कुछ समय पूर्व तक युवा-अपराधियों और बाल-अपराधियों में कोई भेद नहीं किया जाता था और दोनों को समान रूप से दण्डित किया जाता था। प्राचीन मोजिक नियमों (Mosaic laws) में ऐसे पुत्र को जो माता-पिता का कहना नहीं मानता या अनादर करता था, मौत की सजा दी जाती थी।

सन् 1883 में इंग्लैण्ड में एक बच्चे को दो पेन्स की चित्रकारी चुराने के अपराध में फांसी की सजा दी गयी। उस समय के कानून के संरक्षक व निर्माता समाज रक्षा के लिए इस प्रकार के दण्ड को आवश्यक मानते थे। किन्तु वर्तमान में अपराधी बच्चे को दण्ड न देकर उसका सुधार एवं पुनर्वास किया जाता है क्योंकि इसके अभाव में बाल-अपराधी ही आगे चलकर युवा अपराधी वनते हैं। हम यहां वाल-अपराध की परिभाषा, कारण और उन्हें सुधारने के विभिन्न उपायों का उल्लेख करेंगे।

बाल-अपराध : परिभाषा और अर्थ – JUVENILE DELINQUENCY: DEFINITION AND MEANING)

जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून-विरोधी या समाज-विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे बाल-अपराध कहते हैं। इंगलैण्ड के न्यायवेत्ताओं ने अपराध के सम्बन्ध में एक कहावत को जन्म दिया जिसके अनुसार-किसी भी व्यक्ति को उस समय तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता है जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि उसका अपराधी इरादा था। एक अन्य कहावत के अनुसार जब तक कोई व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता तब तक कानून यह नहीं मानेगा कि उसने अपराधी इरादे से व्यवहार किया। जब तक बच्चे में अच्छे-बुरे

के बीच भेद करने की भावना नहीं आ जाती, उसके द्वारा किया गया समाज-विरोधी कार्य अपराध नहीं कहलायेगा। बाल अपराध का निर्धारण करने में आयु भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है। भिन्न-भिन्न देशों में बाल-अपराधियों के लिए अलग-अलग आयु निर्धारित की गयी है। अधिकांश देशों में 7 वर्ष से कम की आयु के बालक द्वारा किया गया कानून व समाज विरोधी कार्य अपराध नहीं माना जाता है क्योंकि इस समय तक बालक में अच्छे-बुरे के भेद की समझ उत्पन्न नहीं होती है। वाल-अपराध की अधिकतम आयु 18 से लेकर 20 वर्ष तक है। इसके बाद की आयु वाले व्यक्ति द्वारा किया गया समाज-विरोधी कार्य युवा अपराध में गिना जाता है। किन्तु समाजशास्त्री आयु को अधिक महत्व नहीं देते क्योंकि व्यक्ति की मानसिक एवं सामाजिक परिपक्वता सदा ही आयु से प्रभावित नहीं होती।

अतः कुछ विद्वान, बालक द्वारा प्रकट व्यवहार की प्रवृत्ति को वाल-अपराध के लिए आधार मानते हैं, जैसे आवारागर्दी करना, स्कूल से अनुपस्थित रहना, माता-पिता एवं संरक्षकों की आज्ञा न मानना, अश्लील भाषा का प्रयोग करना, वेश्याओं, जुआखोरों एवं चरित्रहीन व्यक्तियों से सम्पर्क रखना, आदि। किन्तु जब तक कोई अन्य वैध तरीका सर्व-सम्मति से स्वीकार नहीं कर लिया जाता तब तक आयु को ही वाल-अपराध का निर्धारक आधार माना जायेगा। सेठना के अनुसार, “बाल-अपराध के अन्तर्गत किसी बालक या ऐसे तरुण व्यक्ति के गलत कार्य आते हैं जोकि सम्बन्धित स्थान के कानून (जो उस समय लागू हो) के द्वारा निर्दिष्ट आयु सीमा के अन्दर आते हों

सिरिल बर्ट का कहना है “तकनीकी दृष्टि से एक बालक को उस समय अपराधी माना जाता है जब उसकी समाज विरोधी प्रवृत्तियां इतनी गम्भीर दिखायी दें कि उसके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की जाती है या की जानी चाहिए।”

अमरीका की राष्ट्रीय परिवीक्षा समिति ने बाल- अपराधी ऐसे व्यक्ति को कहा है जो

(i) राज्य के कानून, ऑर्डिनेन्स या राज्य के उपखण्डों के नियमों की अवहेलना करता हो।

(ii) जो आदतन आज्ञाओं को न मानने वाला हो और अपने माता-पिता एवं संरक्षक आदि के नियन्त्रण में न हो।

(iii) जो स्कूल एवं घर से भागने का आदी हो।

(iv) जो स्वयं की और दूसरों की नैतिकता एवं स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता हो।”

न्यूमेयर के अनुसार, “एक बाल अपराधी निर्धारित आयु से कम आयु का वह व्यक्ति है जो समाज-विरोधी कार्य करने का दोषी है और जिसका दुराचरण कानून का उल्लंघन है।”

प्रो. शेल्डन के अनुसार, “बालक द्वारा एक सामान्य सीमा से भी अधिक गम्भीर अपराध करना ही बालअपराध है।”

के. फ्राइडलैण्डर के अनुसार, “बाल-अपराधी वह बच्चा है जिसकी मनोवृत्ति कानून को भंग करने वालीहो अथवा कानून को भंग करने का संकेत करती हो।”

गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, “समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक बाल अपराधी वह व्यक्ति है जिसके व्यवहार को समाज अपने लिए हानिकारक समझता है और इसलिए वह उसके द्वारा निषिद्ध होता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि राज्य द्वारा निर्धारित आयु समूह के बच्चे द्वारा किया गया कानून विरोधी कार्य बाल-अपराध है।

प्रत्येक देश में आयु सीमा भिन्न-भिन्न होने के कारण बाल-अपराधियों की संख्या में भी अन्तर पाया जाता है। 19 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कानून-विरोधी कार्य भारत में बाल-अपराध की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि हमारे यहां 18 वर्ष तक की आयु सीमा के अपराधी को ही बाल-अपराधी मानते हैं, जबकि जापान में वही व्यक्ति बाल अपराधी माना जायेगा क्योंकि वहां बाल अपराधी की अधिकतम आयु 21 वर्ष है। भारत के विभिन्न प्रान्तों में वाल-अपराध की अधिकतम आयु सीमा में भी

निष्कर्ष

बाल-अपराध कहते हैं। इंगलैण्ड के न्यायवेत्ताओं ने अपराध के सम्बन्ध में एक कहावत को जन्म दिया जिसके अनुसार-किसी भी व्यक्ति को उस समय तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता है।

FAQ

Q. बाल अपराध के प्रकार कौन कौन से हैं?

A. किशोर अपराधी वह व्यक्ति होता है जो वयस्क होने की आयु तक नहीं पहुंचा है, जो कि अधिकांश राज्यों में 18 वर्ष है, और ऐसा कार्य करता है जिसे वयस्क होने पर अपराध माना जाता। किशोर अपराधियों के दो मुख्य प्रकार हैं – बार-बार अपराध करने वाले और आयु-विशिष्ट अपराधी।

Q. बाल अपराध क्या है इसके क्या कारण है?

A. जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून – विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे ‘बाल अपराध’ कहते हैं।

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