आंसुओं में डूबी आंखों को अपनों का इंतजार

By Arun Kumar

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अरुण कुमार

अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस आज

बस्ती: जिस कोक ने 9 मा पलकर दुनिया को देखने के लायक बनाया और जिन हाथों ने उंगली पड़कर चलना सिखाया और जिंदगी में तमाम दुश्वारियां लाचारियों और मुश्किलों के बावजूद कभी कोई कमी नहीं रहने दे आज उन्हें हाथों ने बुजुर्गों को घर से बाहर निकाल दिया सिर्फ विद्या आश्रम ही उनके लिए घर बन गया आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस है।

आंखों में सिर्फ इंतजार

हम आपको उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बनकटा में बने वृद्ध आश्रम में मौजूद बुजुर्गों की बेबी और उनके हालातो के बारे में बताएंगे कि आखिर कैसे वह अपनों के बीच से इस तरह निकल गए कि आज उनकी आंखों में सिर्फ इंतजार के अलावा और कुछ भी नहीं है।

वृद्ध आश्रम में करीब 80 बुजुर्ग

बस्ती के वृद्ध आश्रम में करीब 80 बुजुर्ग इस समय रह रहे हैं यहां स्थानीय जिले के अलावा सिद्धार्थनगर संत कबीर नगर गोरखपुर देवरिया बिहार सहित अलग-अलग जिलों और राज्यों के बुजुर्ग लंबे समय से रहकर समय गुजर रहे हैं।

वृद्ध आश्रम प्रबंधन की तरफ से रहने खाने दवा इलाज सुरक्षा और मनोरंजन के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं फिलहाल जब हम लोग वृद्ध आश्रम में पहुंचे तो उसे समय रामचरितमानस का पाठ चल रहा था और सभी लोग इसका श्रवण कर रहे थे वृद्ध आश्रम के संचालक अतुल शुक्ला ने बताया कि यहां कई ऐसे बुजुर्ग हैं जिनका बहुत प्रयास के बाद भी पहचान नहीं हो पाया वह कई साल से यहां पर रहकर अपना समय काट रहे हैं।

बुजुर्ग ने बताया

एक बुजुर्ग ने बताया की उनकी एक बेटी थी और जब पत्नी का देहांत हो गया तो उन्होंने बेटी को अपने भाई को जिम्मेदारी के तौर पर सौंप दिया और अब वह लंबे समय से यहीं पर रह रहे हैं घर वालों की याद तो आती है लेकिन उनके पास यहां से जाकर वहां रहने का कोई इंतजाम नहीं है वही एक अन्य बुजुर्ग ने बताया कि उनका इकलौता बेटा शराब का आदी हो गया है शराब के नशे में वह रोज शाम को उनकी पिटाई करता था एक दिन तंग आकर उन्होंने वृद्ध आश्रम आने का फैसला लिया और वह तब से यहीं पर रह रहे हैं।

परिवार की साथ रहने के सवाल पर फाटक पड़े और कहां की जब अपनों ने ही किनारा कर लिया और जहां पर अपना तो रखना ना हो तो वहां रहना मुनासिब नहीं होगा बेटियों के साथ रहने के सवाल पर कहा कि हम मारवाड़ी परिवार के हैं और हमारे समाज में बेटियों के घर रहना ठीक नहीं माना जाता है। गोरखपुर जिले से वृद्ध आश्रम पहुंचे एकदम पति ने बताया कि वह चार बेटियों और तीन बेटों के परिवार को छोड़कर यहां आए हैं।

जमीन जायदाद खेती-बाड़ी सब बच्चों ने ले लिया और जब हमारे प्रति अपनी जिम्मेदारियां के निर्वहन की बात आई तो उन्होंने बेसहारा छोड़ दिया यह बात सच है कि यहां सिर्फ शरीर है मन हमेशा परिवार और बच्चों की किलकारी में ही लगा रहता है लेकिन बेबी का आलम यह है की चाह कर वहां जा नहीं सकते जब अपने ही दुश्मन बनकर बेगानों जैसा दुर्व्यवहार करने लगे तो आखिर कैसे मन लगेगा।

वृद्ध आश्रम की तस्वीर

इस वृद्ध आश्रम की तस्वीर और हालात बहुत कुछ बयां करते हैं कि कैसे अपनों के हाथ से छूटे हुए हाथ यहां पूरा संसार ढूंढ लेते हैं और धीरे-धीरे इसी को अपना आशियाना मानकर जीवन के अंतिम दौड़ में हर मिनट इस गेट पर टकटकी लगाए रहते हैं और यह उम्मीद है कि कभी कोई अपना आएगा और कान पड़कर माफी मांगेगा और रहेगा कि अब अपने घर चलिए आपके घर को और हमको आपका इंतजार है। आश्रम में रह रहे अधिकांश बुजुर्गों के पास घर परिवार बेटा बेटी हैं।

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