पारिस्थितिकी क्या है इस का अर्थ व विशेषताएँ

By Arun Kumar

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पारिस्थितिकी तन्त्र की अवधारणा पृथ्वी को जीवन्तता प्रदान करती है। इस अवधारणा के अनुसार किसी भौगोलिक इकाई क्षेत्र में समस्त जीव और उनके भौतिक पर्यावरण के मध्य आपस में अन्तर्प्रक्रियात्मक सम्बन्ध होते हैं। ये सभी अपनी-अपनी सीमा में निरन्तर क्रियाशील होकर सूत्रबद्ध रूप में सन्तुलित स्थिति बनाये रखते हैं। इस प्रक्रिया में जैव-अजैव तत्व, वनस्पति, जीव-जन्तु एवं भौतिक परिवेश किसी क्षेत्र को एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग करते हैं।

सौर ऊर्जा, मृदा एवं जल के उपयोग से जैव तत्वों का उत्पादन एवं विकास एक चक्रीय रूप में चलता रहता है। इसी प्रक्रिया के कारण पारितन्त्र में उत्पादन और उपयोग के बीच सन्तुलन बना रहता है। अतः तन्त्र की संरचना, कार्य-प्रणाली एवं गतिशीलता आधारभूत पक्ष है जो एक जटिल स्वचालित एवं नियन्त्रित रूप में किसी भौतिक यन्त्र के समान कार्य करते हैं।

इस प्रकार प्रकृति में जैव एवं अजैव संघटकों के मध्य पदार्थ और ऊर्जा के आदान-प्रदान के तन्त्र (system) या व्यवस्था को ही पारिस्थितिक तन्त्र कहा जाता है।

पारिस्थितिक तन्त्र का आशय (Meaning of Ecosystem)

पारिस्थितिक तन्त्र या पारितन्त्र एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे ही इकोसिस्टम (Ecosystem) शब्द के रूप में प्रयुक्त किया गया है। इस शब्द की विस्तृत व्याख्या सर्वप्रथम 1935 में जर्मन वनस्पतिशास्त्री ए. जी. टेन्सले (A. G. Tansley) ने की थी।

टेन्सले के अनुसार,पारिस्थितिक तन्त्र भौतिक तन्त्रों का एक विशिष्ट प्रकार है और इसकी रचना जैविक (living) तथा अजैविक (non-living) घटकों (components) से होती है। यह अपेक्षाकृत स्थिर, समस्थिति में होता है। यह खुला (open) तन्त्र है तथा विभिन्न आकार एवं प्रकार का होता है।

सन् 1942 में आर. ज. लिण्डमैन ने बताया, ” ‘पारिस्थितिक तन्त्र’ शब्द का प्रयोग किसी भी परिमाण में किसी स्थान, समय तथा इकाई के अन्तर्गत भौतिक रासायनिक जैविक प्रक्रमों से निर्मित तन्त्रों के लिए किया जाता है।

सन् 1963 में फोस्बर्ग ने पारिस्थितिक तन्त्र को परिभाषित करते हुए बताया, “पारिस्थितिक तन्त्र एक कार्यशील परस्पर क्रियाशील (interacting) तन्त्र है, जिसका संगठन एक या अधिक जीवों तथा उनके प्रभावी पर्यावरण भौतिक एवं जैविक दोनों घटकों से बना है।

पारिस्थितिक तन्त्र की विशेषताएँ (Characteristics of the Ecosystem)

पारिस्थितिक तन्त्र की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  • पारिस्थितिक तन्त्र सभी प्राणियों (पौधों एवं जन्तुओं) एवं उसके भौतिक परिवेश का समग्र योग होता है।
  • पारिस्थितिक तन्त्र की संरचना जैविक, अजैविक तथा ऊर्जा घटकों द्वारा होती है।
  • पारिस्थितिक तन्त्र की एक स्थानिक इकाई होती है।
  • इसका आयोग कालिक (temporal) भी होता है।
  • इसके घटकों में अन्तक्रिया होती है तथा विभिन्न जीवों में पारस्परिक सम्बन्ध होते हैं।
  • पारिस्थितिक तन्त्र खुला तन्त्र होता है, जिसमें ऊर्जा तथा पदार्थों का सतत निवेश या आगत (input) तथा निर्गम या निर्गत (output) होता रहता है।
  • इसके नियन्त्रक कारकों में अव्यवस्था नहीं होती है।
  • यह विभिन्न प्रकार की ऊर्जा द्वारा संचालित होता है, परन्तु इसमें सौर्थिक ऊर्जा सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
  • पारिस्थितिक तन्त्र एक संक्रियात्मक इकाई (functional unit) है, जिसके अन्तर्गत जैविक घटक (पौधे, जन्तु, सूक्ष्मजीव और मानव) तथा अजैविक घटक वृहद्रस्तरीय चक्रीय क्रियाविधियों (जैव-भू-रासायनिक चक्र, ऊर्जा प्रवाह, जलीय चक्र, खनिज चक्र आदि) के माध्यम से घनिष्ठ रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित तथा आबद्ध होते हैं।
  • पारिस्थितिक तन्त्र की निजी उत्पादकता ऊर्जा की मात्रा की सुलभता पर निर्भर करती है। यह किसी क्षेत्र में समय इकाई में जैविक पदार्थों की वृद्धि दर की द्योतक होती है।
  • पारिस्थितिक तन्त्र का एक मापक और आकार होता है।
  • पारिस्थितिक तन्त्र के विकास के विभिन्न अनुक्रम (sequences) होते हैं।अनुक्रमों की संक्रमणीय अवस्थाओं को ‘Sere’ कहते हैं। अन्तिम अनुक्रम कीप्राप्ति के बाद पारिस्थितिक तन्त्र सर्वाधिक स्थिर दशा को प्राप्त कर लेता है।
  • पारिस्थितिक तन्त्र से प्राकृतिक संसाधन मिलते हैं। यह स्व-निर्मित (self- generating) तथा स्व-नियन्त्रित होता है।
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